जब भक्त के लिए भगवान राम ने स्वयं बनाई रसोई! | कलियुग की कथाएं भाग – 0२
मित्रो ये घोर कलियुग का समय हे। ईस विपरत कालमे हरिभजन का जरिया हे। जो भी मोक्ष को पाने के लिए जो हरि का नाम लेंगा हरी उसे बचाने के लिए इस कलियुग मे भगवान का रूप धारण करके हमे बचाने आते हे। इसी बातों लेकर हम आए हे कलियुग की कुस एसी कथा हे जिन्होने धर्मोमे हिन्दू की आस्था को ओरभी ज्यादा प्रबल किया था। तो चलिये दोस्तो हम आपको बताने जा रहे कलियुग की कथा।
कलियुग की कथा।
बहोत साल पहले की बात हे एक आलसी था। वो युवक काफी ज्यादा भोला-भला युवक था। आनंद जो दिनभर कूस काम नहीं करता था बस दिनभर वो खाता ही रहता हे ओर सोते रहता था। घरवालो उनसे खिजाजने लंगे की तुम यहा से चले जाऊ जो दिनभर सोता ही रहता हे इस बात को लेकर वह चला जाता हे। वो आदमी वही निकलकर भटकते भटकते उसको एक आश्रम देखा ओर वही आश्रम मे चला गया। वह उसने देखा की कोई एक गुरुजी हे ओर कूस शिष्य थे जो वह काम नहीं करते थे। बस मंदिर की पूजा करते हे ओर उसे मनमे सोचा की ये बड़िया हे। कोई यहा पर कोई काम थाम नहीं बस पूजा ही तो करना हे ये सोसकर वहा चला जाता हे। वह गुरुजी के पास जाकर उसने पुसा मे यहा पर रह सकता हु। गुरुजी बोले हा हा क्यो नहीं ? वह युवक बोला मे यहा पर कोई काम नहीं कर सकता। ओर आगे गुरुजीने कहा आपको कोई काम नहीं करना हे बस आपको पूजा ही तो करनी हे। वह आनंद से बोला हा हा वो तो मे कर लूँगा। ओर आनंद आश्रम मे रहने लगा था ओर उसे महाराज का बिरदान मिला क्यू की उसको न कोई काम ओर नहीं कोई धाम। बस सारे दिन खाते रहे ओर प्रभु भक्ति मे भजन करते रहना।
महिनाभर हो गया था। एक दिन आई एकादशी आयी थी। उसने रसोय मे जाकर देखा की खाने की कोई तैयारी नहीं हुही थी। उसने गुरुजी से पूसा आज क्या खाना नहु बनेगा क्या ? गुरुजी ने कहा आज तो एकादशी हे आज तो तुम्हारा उपवास हे। उसने कहा की नहीं मगर हम ने उपवास कर लिया तो कल का दिनभी नहीं देख पाएंगे हम ये उपवास नहीं कर पाएंगे हमे तो भूख लगती हे आपने पहले क्यू नहीं बताया। गुरुजी ने बताया ठीक हे तुम ये उपवास मत करो ओर खाना भी तुम्हारा कोई ओर नहीं बनाएँगे तुम खुद ही बनाके के खाना होंगा आपको। मरता तो क्या नहीं करता। गया रसोय मे ओर सब देखने लगा। गुरुजी आकार उसको कहने लंगे की देखो अगर तुम खना बना लेते हो तो तुम खाना भगवान रामजी को खाना लगा देना ओर नदी के उस पार जाकर आप बनालों जाओ अपनी रचोय। बस इतना कहकर वो सब लकड़ियो, आटा, घी, तेल ओर सबज़ी लेकर आनंद महाराज चले गए। जैसा तैसा खाना बनाया ओर खाने लगा की तब याद आया की गुरुजीने कहा राम भगवान को भोग धरना नहीं भूलना। भोजन खाने से पहले रामजी को भोग देना हे ये बात सुनकर लगा भजन गाने की ….. आओ मेरे रामजी भोग लगाव जी प्रभु राम आइये। श्री राम आइये मेरा भोजन का भोग लगाईए। कोईभि भोजन नहीं खाने आया ओर आनंद महाराज नाराज हो गए। तब वो बाइसन हो गया। यहा पर मौजे भूख लगी हे ओर रामजी यहा पर भोजन खाने आए नहीं रहे। भोला महाराज ये नहाई जनता की भगवान साक्षात खना नहीं खाने आते थे। पर गुरुजी की बात मनानी जरूरी हे। फिर उस आनंद महाराजने कहा की…. देखो रामजी मे समाज गया की आप क्यू नहीं आ रहे की मैंने खाना रूखा सूखा खाना बनाया हे पर आपको तर माल रूपसे आपको खाने की आदत हे इसलिए आप यहा पर नहीं आ रहे ना! तो सुनो प्रभु आज वह पर आज कुस भी होई खाना बना हुआ हे क्यूकी सबको एकादेशी हे ना इसलिए वो लोग नहीं खाना चाहते आपको खाना हे तो खावों।
यह बात सुनकर भगवान श्री राम अपने भक्त पर मुस्कराइए ओर माता सीता के साथ तुरंत ही प्रगत हुये। भक्त ये समज नहीं सका हे की गुरुजी ने कहा की भगवान राम ही भोजन खाने आएंगे यहा पर पर माता सीता को साथ लेकर भवन राम यहा पहोस गए ओर मैंने तो यह भोजन दो लोगो के लिए मैंने बनाया हे एक भगवान राम के लिए ओर मेरे लिए। चलो कोई बात नहीं आज मे खिला देता हु ओर भोला बोला मे तो प्रभु भूखा रह गया हु मगर आप दोनोई देखकर मौजे बहुत अच्छा लग रहा हे लेकिन हा आप अगली एकदेशी पर मुजे बता देना की कितने जन आ रहे हो! ओर हा आप थोड़ा जल्दी आना। रामजी उसकी बात पर प्रसन्न हो गए ओर भोजन करने के बाद वह चले गए। अगली एकादशी पर आने पर ये भोला भला मानस सब भूल गया था ओर उसे लगा की भगवान एसे आते होंगे ओर भोजन खाकर चले जाते होंगे।
फिर अगली बार एकादशी आई तब भोला मानस गुरुजी से कहा की मे चला अपना खाना बनाना पर गुरुजी थोड़ा ज्यादा अनाज देना ओर कहा वहा दो लोग आते हे । गुरुजी मुस्कराये ओर कहा भूख के मारे ओर बावला हे जा लाइजा थोड़ा अनाज ज्यादा। अबकी बार उसने तीन लोगो का खना बनाया ओर फिर गाने लगा भगवान श्री रामजी के भजन गाने लगा…आओ मेरे रामजी भोग लगाव जी प्रभु राम आइये। श्री राम आइये मेरा भोजन का भोग लगाईए। प्रभु की महिमा ही निराली हे जो भक्त के साथ कौतुक करनेमे भगवान को भी मजा आता था। इसबार भगवान रामजी अपने भाई लक्ष्मण, भरत, सीता ओर हनुमान को लेकर भक्त के पास पोहसे भोजन कने के लिए। भक्त को चक्कर आ गए ये देखकर। भोला मानस बोला… यह क्या हुआ एक भोजन बनाया तब दो लोग आए आज तीन लोगो का भोजन बनाया तो पूरा ही पूरा खानदान आ गया। लागत हे अगली बार भी मुजे भूखा रहन पड़ेंगा। सबके लिए भोजन लगाया ओर बैठे बैठे देखता रहा ओर अनजानेमे उसकि एकदशी हो गई। फिर अगली एकादशी आने से पहले गुरुजी को कहा की गुरूरजी… आपके रामजी अकेले भोजन खाने क्यू नहीं आते हर बार कितने सारे लोग लेकर आते हे ओर एस बार अनाज ज्यादा लंगेगा। गुरुजी लगा किए अनाज बेचता तो नहीं हे ना देखना पड़ेंगा।
तब गुरुजी ने कोई दूसरे भक्त से कहा की भंडार मे से उसको जितना अनाज चाहिए उतना देदो ओर अनाज दे दिया फिर गुरुजी ने उसका पीछा किया फिर देखने कंगे की कैसे ये सारा अनाज का कियाको देता हे। इसबार आनंद सोचा की की इसबार मे पहले खाना नहीं बनाऊँगा पता नहीं के कितने सारे लोग आ जाये ! पहले काम करता हु मे पहले बुला लेता हु फिर बनाता हु। फिर उसने भजन लगाए की…. आओ मेरे रामजी भोग लगाव जी प्रभु राम आइये। श्री राम आइये मेरा भोजन का भोग लगाईए। ओर वह पर सारा राम दरबार लेकर भगवान श्री राम आकार पुहसे। इसबार तो हनुमानजी भी साथ आए। लेकिन ये क्या भक्त प्रसाद तैयार भी नहीं हुआ था ओर भक्त बोला इसबार प्रभु मैने खाना नहीं बनाया ! प्रभुने पूसा क्यो? मुजे तो खाना नहीं मिलेंगा पर क्या फायदा मे भोजन बनाकर। आप ही भोजन बना लो ओर आप ही खालों भोजन। ये बात सुनकर भगवान रामजी मुस्कराये ओर सीता माता भी हसने लंगे उसके मासूम जवाब से ओर लक्ष्मण जी बोले क्या करे प्रभु ? भगवान श्री राम बोले भक्त की इच्छा हे पूरी तो करनी पड़ेंगी चलो लग जाओ काम पर। लक्ष्मण जीने लकड़ी उठाई ओर सीता माता आटा चारने लगी ओर भक्त एक तरफ सबकुस देखता रहा। माता सीता रचोई बना रही थी। तब बहोत सारे ऋषि मुनियो यह प्रसाद खाने लेने आए। इधर गुरूरजी ने देखा की खाना तो बना नहीं भक्त एकतरफ बैठा हुआ हे ओर गुरुजी पूसा बेटा खाना क्यू नहीं बनाया क्या बात हे ? अच्छा आप गए गुरुजी देखिये कितने सारे लोग आते हे भगवान श्री रामजी के साथ ओर गुरुजी कहा मुजे कुस नहीं दिखाय रहा तुम ओर यह तुमहारे अनाज के सिवा। भक्त ने माथा टेक लिया ओर बोला एक तो यह प्रभु इतनी सारी महेनत कराते हे ओर खाना भी नहीं खाने देते ओर यूपरसे गुरुजी को आप डिकाया नहीं देते ये ओर बड़ी मुसीबत हे। भक्त ने कहा प्रभु जी आप गुरुजी को क्यो नहीं दिखाय देते हो ? प्रभू बोले मे उन्हे नहीं दिख सकता। आनंद बोला क्यो वो तो बड़े पंडित हे, बहोत ज्ञानी हे। विद्रवान भी हे उन्हे तो बहुत कुस आता हे उनको क्यो नहीं दिखते आप ? प्रभु बोले की माना की उन्हे सब आता हे की पर वे सरल नहि हे तुम्हारी तरह ईसालिए मे उन्हे दिखाय नहीं देता हु। तब आनंद ने गुरुजी कहा की… गुरुजी को कहता हे की आप उसके लिए आप सरल नहीं हे इसलिए आपको दिखते नहीं हे। गुरुजी रोने लंगे की बाकी मेने सबकुस पाया मगर मैंने सरलता नहीं पा सका तुम्हारी तरह। ओर प्रभु तो मन की सरलता से ही मिलते हे। प्रभु प्रगट हो गए ओर गुरुजी को भी दर्शन दिये। एस तरह व्याकुल होने पर प्रभु ने रचोई अपने हाथो से बनाई ओर गुरुजी को भी प्रसाद खिलाया। आजकी ये भक्तिकथा हे जो लोकश्रुति पर भी आधारित हे।