जब भक्त के लिए स्वयं नौकर बने भगवान शिव | कलियुग की कथाएं भाग – ०३
मित्रो ये घोर कलियुग का समय हे। ईस विपरत कालमे हरिभजन का जरिया हे। जो भी मोक्ष को पाने के लिए जो हरि का नाम लेंगा हरी उसे बचाने के लिए इस कलियुग मे भगवान का रूप धारण करके हमे बचाने आते हे। इसी बातों लेकर हम आए हे कलियुग की कुस एसी कथा हे जिन्होने धर्मोमे हिन्दू की आस्था को ओरभी ज्यादा प्रबल किया था। तो चलिये दोस्तो हम आपको बताने जा रहे कलियुग की कथा।
भगवान शिवजी कैसे बने भक्त के नौकर जानिए उसकी कथा ।
देशभर मे भगवान शिव कही प्रसिद्ध मंदिर स्थापित हे । जिनके जुड़ी हुही कई रोचक कथाये सुनेनेको आपको मिलती हे। भोले भण्डारी का एक ऐसा ही मंदिर एक बिहार से मधुबानी से लेकर भवानीपुर के गावमे स्थित हे। जो उगनाथ महादेव मंदिर के नाम से बहुत नाम से प्राचीलित हे एसी उसमे लोक मान्यता हे। इस मंदिर मे भगवान शिव स्वयं अपने हाथो से जो मैथिली भाषासे जो महाकवि विध्यापति घर से बाहर निकली थी। हिन्दी साहित्य की भक्ति कथा से परंपरा से कवियोमे से एक ये कथा जीनामे भगवान महादेव का वर्णन बहुत तरह से ओर आपको अत्यंत रोचक दार ये कथा भगवान महादेव के हाथो से लिखी गयी हुही कथा हे। जिनहे मैथिली के सर्वो प्रथम कवि के रुपमे आपको जानने मिलता हे। वे भगवान शिव के मंदिर का परिग्रह करना जानते हे। इस जमाने मे भगवान शिव के बहोत बड़े भक्त मिल जाते थे। उन्होने भगवान शिव के अनेक कथाओ का वर्णन किया था ओर रचना की हे। मान्यता के अनुसार जगत व्यापी भगवान शिव उनकी बहोत रचना से लेकर भगवान शिव उस पर प्रस्स्न होकार उस पर प्रगत हुहे थे।
एक दिन भगवान शिव खुद दूसरे के रूपसे उयस्कों प्रगत हुहे थे ओर उयांके पास चले गए। उनके साथ रहने के लिए भगवान शिव खुद विध्यापति के घरमे नौकार तक बननमे तक तैयार थे। उनहोने अपना नाम उमना बताया था। दरअसल कभी विध्यापति आर्थिक रूपसे वो प्रबल नही थे। इयसलिए उन्होने उमना को यानि के भगवान शिव को नौकरी पर रखने से पहले उनको मन कर दिया था। मगर फिर भगवान शिवजी से कहने पर ही सिर्फ दो तक भोजन पर उन्होने कहने के लिए वो भगवान शिव तैयार हो गए थे।
एक एसी कथा हे की जब विध्यापति राजा के दरबार मे जा रहे की तब वह पर तेज गर्मी,ओर धूप से विध्यापति से उसका गला सूखने लगा था। मगर उयसने देखा की याहा पर आसपास जल नहीं था। पर इओसपर साथ चल रहे थे उमना यानि की भगवान शिव उसको पानी को लाकर लाने कहा तब शिव ने दूर जाकर आपनि जटा खोली ओर एक लाओता गंगाजल लेकार आए। तुरंत ह जल विध्यापति को दिया तुरंत ही विध्यापति को गंगाजल का स्वाद आया था। उन्होने सोचाकी इस वन मे जल कहा से आया। उस विध्या पति ने चोसा की ये भगवान शिव तो नहीं हे न जो गंगाकजल लेकार आए ओर उमना के रूपने भगवान शिव तो नहीं हे। तुरंत ही भगवान शिव के पेर पकड़ लिए थे ओर इसके बाद भगवान शिव अपने वास्तविक स्वरूप से लेकार बाहर आए ओर उन्होने विध्यापति को दर्शन दिये ओर विध्यापति के साथ रहने की इच्छा बताई ओर भगवान शिव ने कहा ये मेरा वास्तविक रूप के बारेमे दूसरे के बारे मे आपको पता नहीं होना चाहिए। इससे विध्यापति को समजा दिया की तुम मौजे आपने बारे मे बता नहीं देंगे आप।
एक दिन उमना द्ररा किसी एक गलती की वजह से क्यूकी विध्यापति के वजह से आपको शिव जी को उस्की पत्नी शिवजी को लकड़ी से मारने लगी उसी समय पर विध्यापति वह हजार हो गया ओर उयूके मुहासे निकाल गया की….ये भगवान साक्षात ये तो भगवान शिवजी हे उसे तुम क्यू मारा रही हो। मगर विध्यापति से जैसी ही ये बात निकली तुरंत ही भगवान शिव गायब हो गए। इसके बाद अपनी भूल पर पछताये हुहे कवि विध्यापति भगवान शीव को वनाओ मे धूधने लगे ओर अपनी प्रिय भक्ति पर देखकर भगवान शिव जी उसके सामने भगवान शिवजी प्रगत हुहे। ओर बहगावन शिव जी ने कहा की मे अब तुम्हारे पास नहीं रह सकता हु। परंतु मे जो तुम्हारे साथ मे उमना के रूपा से जो मे रहा जिस चिन्ह की तरह से मे रहा अब मे तुम्हारे साथ मे शिवल्लिंग के रूपसे मे आपके पास रहना चाहता हु। यह क्लाहकर भगवान शिवाजी तुरंत ही भगवान शिव उसके सामने शिवलीग की तरह प[रगत हुहे थे। जिस आप उसे देख रहे की मंदिर को आप उसका निर्माण सन 1932 मे उसकी स्थापना हुही थी। इसके आलावा बताया जाता हे की 1964 मे एसा कहा जाता हे की भूकप मे मंदिर को कोई भी नुकषाण नहीं आया था। माना की आजा न्भगवान शिव जी का मंदिर को आज भव्य बनाया गया हे।
यह मित्रो यह कथा एक सच्ची कथा हे ओर वह वाकही मे भगवान शिव की वह पूजा वह पर थाती हे ओर भगवान शिवाजी वह अपने भक्तो की मनोकमानये पूरी कर देते हे ओर मित्रो हम अपनी कथा को यहा पर हां वियराम कर देते हे। कैसी लगी हमारी आज की ये कथा ओर आपभी वह दर्शन करना आप नहीं भूलना ओर आपको हमारी तरफ से आप बहुत अच्छे होंगे ओर आगे बहोत सारी ये कलियुग की कथा पर आधारित हे।