सोने का थाल – भगवान शिव का असली भक्त कौन है? कलियुग भाग की कहानियाँ – 01
मित्रो ये घोर कलियुग का समय हे। ईस विपरत कालमे हरिभजन का जरिया हे। जो भी मोक्ष को पाने के लिए जो हरि का नाम लेंगा हरी उसे बचाने के लिए इस कलियुग मे भगवान का रूप धारण करके हमे बचाने आते हे। इसी बातों लेकर हम आए हे कलियुग की कुस एसी कथा हे जिन्होने धर्मोमे हिन्दू की आस्था को ओरभी ज्यादा प्रबल किया था। तो चलिये दोस्तो हम आपको बताने जा रहे आज की कलियुग की कथा।
सोने का थाल की कथा।
एक नगर मे भगवान शिव का भव्य मंदिर था। जहा पर लोग दर्शन करने के लिए दूर दूर के लोग यहा पर शिवजी के दर्शन करने आते रहते थे। श्रावण का महिना था। जहा पर दूर दूर से लोग कावड़ लेकर आते थे ओर भगवान शिव को जलाभीषक करने आए हुये थे। मंदिर का परिसय सभी भक्तो से भरा हुआ था। तभी असानक आकाशमे से बिजलीया हुही के आवाज आने लगे ओर आकाशमे से एक सोनेका थाल उतरा उसकी साथ एक भविष्यवाणी हुई ….
” जो कोई भगवान शंकर का सच्सा भक्त ओर प्रेमी होंगा उसी को ये थाल मिलेंगा। ” ….
तभी मंदिर के परिचय के अंदर सभी लोगोने ये भविष्यवाणी सुनी ओर अंदर हि अंदर सब लोग बाते करने लगे थे ओर सभी लोग एकठे हो गए थे। जो लोग मंदिर की व्यवस्था देखते थे उन्हे पूरा विश्वास था की ये सोने का थाल हमे ही मिलेंगा हे इसलिए सब आगे आकार खड़े हो गए थे। सबसे पहले पंडितजी आये ओर पंडीजीने कहा की देखिये मेरी बात सुनिए मे प्रतिदिन महादेव की पूजा ओर अभिषेक करता हु मे ही भोलेनाथ सबसे निकट का सेवक हु मे भोलेनाथ का सबसे निकट प्रेमी ओर भक्त हु इसलिए ये सोना का थाल मुजे मिलना चाहिए। इतना कहकर पंडितजी ने सोनेका थाल उठाया जैसेही पंडितजीने थाल उठाया वैसी ही थाल पीतल का हो ये देखकर पंडितजी हैरान हो गए थे ओर थाल को वैसीही रख दिया ओर वहासे निकल गए। उसी प्रकार वहा पंडितजी को देखकर सभी पंडितोने खुद को आजमाया ओर उनमसे कोईभी पंडित सच्सा भक्त नहीं निकला उनभे ने उस पंडित जेसा किया उस सोना का थाल को उस जगह मेल दिया ओर वह से सभी पंडित चले गए।
उस सामी सब पंडितो निकल रहे ठगे तभी उस नगर के राजा का आगमन हुआ था। ओर राजा आगे आकार सभी के सामने बोले की मैंने भोलेनाथ की सबसे बड़ी आराधना की ही ओर मैंने ये बात भी सुनी ये की ये सोने का थाल उठाता हे जैसे ही हाथमे लेते हे वो थाल पीतल का हो जाता हे ये बात सुनकर राजाभी हैरान हो गए थे हमारे राज्य मे कोईभी सच्सा पंडित नहीं हे क्या? ये बात सुनकर राजा आगे आकार कहा की ये थाल मुजे मिलना चाहिए। राजा थाल उठाने के लिए आगे बढ़े ओर जैसेही राजाने थाल उठाया वैसीही थाल तांबे का हो गया ये देखकर राजा हैरान हो गए थे ओर सोने के थाल को यथास्थान पर रखकर राजाभि एक बाजू खड़े हो गए। इसके बाद एक से बढ़ाकर एक ज्ञानी ,भक्त ओर दानी सबने सोनेके थाल के बारेमे सुना वैसी हे राज्यमे पधारे ओर उन सभी ने सोनेका थाल उठाया पर किसी के हाथमे कौस नहीं मिला ओर किसी के हाथ मे चोट लगा गई उसी दौरान सभी हैरान हो गए थे। जब लोगो को पता चला की ये सोनेका थाल सभी के हाथमे ये थाल सोनेका नहीं रहा था बल्कि तांबे का हो गया ओर तभी उसने सोसा की हममेसे से कोई भी महादेव का भक्त नहीं हे।
उसी सामी एक किसान का आगमन हूआ। वो बीछारा महीनो बाद आज चर्तुमार्च के सोमवार के शुभ अवसर पर वह किसान भोलेबाबा के दर्शन करने आया था। गरीबी ओर गृहीसती के बोज को लेकर ओर खेतोएम दिन रात मजदूरी करके अपना जीवन ओर घरका गुजारा चलाता था। तभी किसान रास्तेमे आही रहा था तब उसके सामने कोई भिखारी आ गया ओर भिखारी भिख मांगेने लगा ओर काहा मौजे बहुत भूख लगी हे तुम्हारे पास कोई खाना हो तो मौजे दो मौजे बहुत भूख लगी हे ये बात सुनकर लिसान को उस भिखारी पर दया आगई ओर अपने के लिए जो खाना लाया था उस भिकारी को खाने को दे दिया। उस किसान ये भी सुना था की गाव मे कोई सोनेका थल आया हे जो सच्सा भक्त हो ये थाल उसको मिलेंगा लेकीन किसान ने उस बात पर कोई द्यान दियाही नहीं। वो किसान सीधा मंदिर मे गया ओर महादेव की पूजा पाठ करकर बहार आ गया। जब किसान परिक्रमा करके वो अपने खेत वापस जाने लगा,तब कोई पीछे खड़ा आदमी बोला अरे भाई तुम सोनेका थाल नहीं उठाना चाहते हो ! यदि हो सकता हे की तुम्ही वो सच्से भक्त हो जो सोनेका थाल आपके पास आजाए जिसके लिए ये थाल आ गया हे। किसान को बुरा लगा की वो व्यक्ति मेरा मज़ाक उड़ा रहा हे ओर किसान ने उस आदमी को कहा अरे भाई ! मे तो कभी नहीं भगवान शिव की पूजा पाठ नहीं करता ओर महीनोमे मे एकाद भगवान शिव के मंदिर आता हु मे तो मे थोड़ा ही भगवान शिव का सच्सा भक्त बन सकता हु। उनमे से एक आदमी बोला अरे भाई ! हम लोगो ने सोने का थाल को उठाया पर हम भगवान शिव के दो कोडी के भी हम भक्त नहीं हे। अब तुमभी अपना हाथ लगाकर देखलो सोनेका थाल मिले या ना मिले ये तो पता चल जाएंगा जी तुम कितने भगवावन शिव के भक्त ये ये बात तो पता चल जाये। लोगेने बहुत आग्रह करने से उस भोले भले किसान ने जाकर सोने का थाल उठाही लिया। जैसे ही उस सोनेका थाल को उठाया वैसे ही लोगका आश्रयका ठिकाना नहीं रहा क्यूकी किसान के हाथमे उस सोने का थाल चमकने लगा था। ये सब देखकर सबमे खुशियो की लहेर दौड़ गय। सभी लोग उयकी जय जय का नारा लगाने लंगे ओर सब किसान को पुसने लंगे की भाई तुम असली भगवान शिव के सच्सा भक्त हो ओर हमे भी तुम बतादो की तुम कैसे भगवान शिवजी भक्ति करते हो। जिस कारण महादेव तुम्हारे मे इयतने प्रस्स्न हे।
तब किसान सभी को कहने लगा की भाई मे कोई सच्सा भक्त नहीं हु मे केवाल दिनभर खेतोमे काम करता हु ओर थोड़ा समय निकालकर मे जरूरत मंदो की मे सेवा करता हु इसके अलावा मे कोई विशेष कारी नहि करता हु। सभी लोग किसान को पुसने लंगे की तुम जरूरत मंदो की तुम क्यू सेवा करते हो ? हस्ते हुई किसान बोला मुजे मदद करने से मुजे सुकून मिलाता हे ओर दूसरे के चेहरे पर मुस्कान देखकर मुजे खुशी मिलती हे ओर जो आंदंद जो मिलता हे उसे मे शब्दो मे ब्यान बनही करता हु। शायद यही कारण हे जो महादेव मुजेसे खुश हे इयलिए मुजे सोने का थाल आगमन किया हे। इसलिए मित्रो आप हमेशा याद रखये की :
सत्कर्म का आरंभ भी आनंद से होता हे ओर अंत भी आनंददायक होता हे,
दुष्कर्म का आरंभ भी दु:ख से होता हे ओर अंत भी दु:खदायक होता हे ।
आप सेकड़ों मिल की यात्रा करके भी आप दूसरा का दिल दुखाते हे तो आपकी वो तपस्या, आराधना ओर महादेवका दर्शन आपके लिए धूल के बराबर हे दोस्तो।